भारतीय रेल भी बड़ी विचित्र है, बिलकुल मेरी जिंदगी की तरह। कभी सीधी चलती है तो कभी घुमावदार रास्तों में इधर उधर ।
यूँ तो इसका उपयोग करके लोग खुश होते है और वाहवाही करते है, मेरी भी करते हैं। लेकिन कभी कभी लोगों की इच्छानुसार न चलकर देर(Late) क्या कर देती है, लोग इसकी सारी अच्छाइयों को भूलकर कोसने लग जाते है, वाहवाही लड़ने वाले ये लोग तोड़फोड़ करके खुद ही गलत साबित हो जाते है। असल में ऐसे लोग मतलबी होते है।
लेकिन रेल भी देखो कितनी दृढनिश्चयी और लक्ष्यगामी है...
more... , सब को अनसुना कर फिर चल देती है ......उन लोगों के लिए जो इसका सही मायने में उपयोग करते है और इसकी महत्ता समझते हैं।
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कुछ लोग कहते हैं कि ये तोड़फोड़ या नुकसान करने वाले निम्न दर्जे/वर्गं के लोग है क्योंकि अमीर लोग तो स्वच्छता अपनाने लोग है इसलिए वो ऐसा नही करेंगे। तो आप बिलकुल सही हो जनाब! अमीरर लोग तो बस टट्टी करके फ्लश करना जानते हैं बाकी तो वो जूतों सहित सीट पर चढ़ने को अपना अभिमान और फैशन मानते है।
ये दिखावटी सभ्य लोग जनरल डिब्बे में चूं भी नहीं करते। जब कोई इन्हें टाँगे चौड़ी करके बैठा देख सीट मांगता है तो इनके मिर्च और केरोसिन एक साथ लग जाता है लेकिन मुंह सड़े हुए कद्दू की तरह बनाकर सीट दे देते है, नहीं आप गलत समझे । इनको देनी पड़ती है।
इन दिखावटी सभ्य लोगों का सफर चुपचाप , खुद की अकड़ में ही गुजर जाता है। उसी समय सफर कर रहे गरीब/साधरण लोग 10 रूपये की मूंगफली खरीदकर खाते हैं तो भी बगल वाले वाली सीट पर बैठे यात्री के साथ साझा करते हैं ...एक दूसरे की बाते बताकर ये इतने घुलमिल जाते है कि विदा होते है तो भी एक दूसरे की तरफ देखकर होते है।
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कहने को तो ये रईसजादे अपने आप को पढ़ा लिखा मानते है, लेकिन वो मानव मूल्य कहाँ गए जो एक इंसान में होने चाहिए। कहने को तो बड़े ये skilled communicator मानते है लेकिन कहाँ गयी इनकी वो skill जो सिर्फ rupees के लिए निकलती है। स्वार्थ भरी होती है।
इन सब में भेदभाव किये बिना भारतीय रेल फिर चल देती है अगले स्टेशन की और फिर इसे लोगों को उतारने और चढ़ाने के लिए।
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काश कुछ ऐसा हो की मेरे भारत के साधारण लोगों के ये जीवन मूल्य हर भारतीय में फिर से भर दिए जाये। फिर से मेरा भारत अमीरी के साथ साथ मानव मूल्यों से युक्त देश बन जाये। नित्य होती रेल तोड़फोड़ से मुक्त भारतीय रेल का सपना साकार हो सके ।
सोचियेगा आप भी । क्या पता कब फ़टी सीट आप को मिल जाये और आपके पास सुई धागा न हो। कब कचरे से भरे फर्श पर बैठना हो लेकिन झाड़ू ना हो।
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क्या पता कब वो समय आ जाये आप आमिर तो हो लेकिन मानव मूल्य ना हो।